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साधुसंग :from the notes prepared during lecture of H.H.Lokanath Swami Maharaj

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साधुसंग-साधुसंग सर्व शास्त्र कहे |
लव मात्रे साधुसंग सर्वसिद्धि हय |

संग दो तरह के होते हैं:
  1. सत्संग
  2. असत्संग
सत्संग:
भगवान सचिदानंद हैं.भगवान का संग जहाँ मिलता है वो साधुसंग कहलाता है.जो असत्संग को त्यागता है वही वैष्णव है.

असत्संग:
जन्संघस्य लौलुस्य भक्ति विनस्यति|
असत्संग से हमारी भक्ति का विनाश होता है.आजकल लोग भगवान से विमुख हैं.हमारा मुँह भगवान की तरफ कराने वाले साधु होते हैं और उनका संग साधुसंग.भगवान कहते हैं कि
ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥

इन्द्रियविषयों का चिंतन करते हुए मनुष्य की उनमे आसक्ति उत्पन्न हो जाती है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता.काम से फिर क्रोध उत्पन्न होता है.

आसक्ति भी दो तरह की होती है:
  • सत्संग से उत्पन्न होनवाली 
  • असत्संग से उत्पन्न होनवाली
असत्संग से उत्पन्न होने वाली आसक्ति
इन्द्रियविषयों के ध्यान से आसक्ति उत्पन्न होती है.sense objects की ओर आसक्ति बढ़ जाती है.आसक्ति तीव्र होने पर काम का रूप धारण कर लेता है.काम से कृध उत्पन्न होता है.फिर व्यक्ति सम्मोहित होता है.उसकी बुद्धि भ्रमित होती है.ये सब होता है असत्संग के कारण.
सत्संग से उत्पन्न होने वाली आसक्ति
विषयों से आसक्त होने लेकिन विषय objects भगवान होंगे.ऐसे ध्यान से व्यक्ति फिर भगवान से आसक्त होगा.
काम उत्पन्न होने की बजाय प्रेम उत्पन्न होगा.संग से शुरुआत होकर आसक्ति यानि attached to God..ऐसी स्थिति आध्यात्मिक जीवन में आ जाती  है.संसार से अनासक्ति और भगवान से आसक्ति.
    Topic दो ही हैं संसार में
    1. माया
    2. भगवान 
    इन दो बातों का ही संसार बना है.असत्संग से माया में फंसते हैं.प्रकृति में विकृति आने से कई प्रकार की आकृति हो जाती है और हम उससे आसक्त हो जाते हैं और माया के चंगुल में फंस जाते हैं.कृष्ण से आसक्त भगवान के भक्तों,संतों से,साधुओं से आसक्त होंगे तो इसके परिणाम से भगवान में प्रेम उत्पन्न होगा.काम से उत्पन्न होता है क्रोध अपर प्रेम से प्रेम ही उत्पन्न होता है.क्रोध भी उत्पन्न हो सकता है जब विष्णु,वैष्णव का जब कोई अपराध करता है.हनुमान जी ने भी क्रोध किया था.कृष्णभावनाभावित व्यक्ति जड़ नही होता.उनमे भी emotion होता है.नृसिंह भगवान ने जैसा क्रोध प्रकट किया था वैसा किसी ने नही किया.सांसारिक क्रोध से विस्मृति,बुद्धिनाश होता है.आध्यात्मिक क्रोध से उसकी बुद्धि का नाश नही होता.भगवान कहते हैं कि उसे बुद्धि दे दूंगा:
        तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
         ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥
      भगवान जो बुद्धि देते हैं उस बुद्धि का भक्त क्या करेगा?
                                 येन मामुपयान्ति ते 
      उधर भगवान कहते हैं कि बुद्धिनाश लेकिन साधुसंग प्राप्त कर आध्यात्मिक पथ पर हैं तो भगवान उसे बुद्धि देंगे जिससे वो भगवान को प्राप्त करेंगे.वैष्णव असत्संग तो त्यागकर सत्संग अपनाते हैं.उनका U-Turn होता है.विमुख से सन्मुख हो जाती हैं.
      विमुखस्य सुदुखीतस्य 
      विमुख हैं वो सुदुखी हैं.भलीप्रकार से दुखी.
      भूतानि भवानी जनार्दनस्य अनुग्राह 
      ऐसे लोगों को सुखी करने के लिए सधुलोग भ्रमण करते हैं.जैसे प्रभुपाद विश्वभर में भ्रमण किये.वो तो साधु थे ही.उनके संग में आनेवाले भी साधु बन गए.
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      कैसे पहचाना जाए साधु को?
      महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
      भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम्‌ ॥



      जिन्होंने दैवी प्रकृति का आश्रय लिया है वो साधु हैं.दैवी प्रकृति भगवान की अंतरंगा शक्ति राधारानी हैं.आजकल तो देवी-देवता की पूजा करनेवाले भी साधु मिलते हैं.निराकार,अद्वैत का प्रचार करनेवाले भी साधु मिलते हैं.पर चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि सावधान:
      मायावाद भाष्य सुनिल भईल सर्वनाश.
      साधु का दर्शन होता है.उनके सानिध्य का भी प्रभाव है.साधु के दर्शन का मतलब है कि उनके मुख से जो सत्य वचन,भगवान के रूप,गुण,लीला के बारे में सुनते हैं.प्रयाग में गंगा,यमुना का दर्शन है पर सरस्वती नही है.संतों के मुख से सरस्वती निकलती है.भगवान के चरणों से गंगा निकली है.भगवान के मुख से नुकली गीता,भागवतम जब संतों के मुख से निकलती है तो वो ही सरस्वती है.गंगा के स्नान से भी महत्त्वपूर्ण है साधु का संग.

      आध्यत्मिक जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण बात है तो वो साधुसंग हे है.इसके बिना गति नही है.साधु,शास्त्र,आचार्य तीन प्रमाण माने जाते हैं.हमारे लिए साधु जो शास्त्र को,उसमे दिए गए सिद्धांत को समझाए.आवश्यकता होने पर टीका,भाष्य,विश्लेषण कर समझाए.आचार्य को भी साधु कहा जाता है.जैसे श्रील प्रभुपाद आचार्य हैं.शास्त्र की शिक्षा देनेवाले साधु होते हैं.इस शिक्षा से हम final destination तक पहुँच सकते हैं.

      भगवान के चरण कमल final destination हैं.